अतीत के अंधेरों में खोया एक महान वैज्ञानिक
कहते हैं महानता की कोई स्थिर परिभाषा नहीं होती | भगवान के बनाए हुए इस अलौकिक संसार में हर एक इंसान किसी ना किसी दृष्टिकोण में महान है | परन्तु भगवान की माया भी बहुत विचित्र है | इस मायालोक में ऐसे अनगिनत महान व्यक्तित्व हैं जो अतीत के अंधेरों में खो गए हैं या यूँ कहूँ कि अतीत के अनपलटे पन्नो में गुम हो गए हैं | इस छोटे से लेख के माध्यम से मैं एक ऐसे ही महान वैज्ञानिक को अपनी श्रद्धांजलि प्रस्तुत करना चाहता हूँ जिसने परिसीमा स्तर भौतिकी जैसे जटिल विषय को एक विशेष दर्जा दिलाया और करीबन 110 वर्ष पूर्व विज्ञान के इस नए अध्याय की नीव रखी थी | बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में विज्ञान का एक ऐसा दौर चल रहा था जब तरल पदार्थों की वास्तविक बहाव की परिस्थितियों में नेविएर-स्टॉक समीकरणों के सही सही समाधान प्राप्त करने में समस्त वैज्ञानिकों को महज असफलता ही हाथ लग रही थी | ऐसे कठिन दौर में विल्बेर राईट और ऑर्विल राईट बंधुओं ने अपने अथक प्रयासों से मानवयुक्त एक ऐसे जहाज का निर्माणकार्य अपने कंधों में ले रखा था जिससे एक असंभव से लगने वाले मानव के आकाश में उड़ने के सपने के सच होने की राहें धीरे धीरे साफ़ होने लगी थी, परन्तु राईट बंधुओं को भी उनके जहाज से संबंधी गणितीय पहलुओं को पूर्णतः समझने के लिए नेविएर-स्टॉक समीकरणों का बारीकी से विश्लेषण करना था | अनुभवहीनता के बावजूद अपने कभी ना थकने वाले रवैये के कारण 17 दिसंबर 1903 को आखिरकार राईट बंधुओं के सामने समस्त मुश्किलों ने अपने घुटने टेक दिए और उनके द्वारा बनाया हुआ जहाज आकाश में उड़ने में सफल रहा | इस सफल उड़ान से यह भी साबित हो गया कि विज्ञान के युग में कोई भी आविष्कार किसी सैधांतिक मदद का मोहताज नहीं होता | कुछ ऐसी परिस्थितियों के दौरान 8 अगस्त 1904 को जर्मनी के हैदेल्बेर्ग शहर में स्थित जर्मनी के सबसे पुराने विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय गणितीय कांग्रेस के तृतीय अधिवेशन का आयोजन किया जा रहा था | इस अधिवेशन में गणितज्ञों और वैज्ञानिकों का एक छोटा समूह एकत्रित हुआ था | इस अधिवेशन में एक 29-वर्षीय युवा प्रोफेसर लुडविग प्रेंड्तल को अपने शोध पत्र को प्रस्तुत करने का अवसर दिया गया था | वैसे तो लुडविग प्रेंड्तल जर्मनी में हैनोवर के एक छोटे से तकनीकी विश्वविद्यालय में अस्थायी तौर पर प्रोफेसर की पदवी पर कार्यरत थे, परन्तु अधिवेशन में समयाभाव के चलते उनके शोध पत्र को प्रस्तुत करने के लिए महज 10 मिनट का समय दिया गया था | वास्तव में 10 मिनट (= 600 सेकंड) का समय बहुत अल्प होता है पर इस युवा प्रोफेसर के लिए इतना समय पर्याप्त था और उन्होने इन 10 मिनटों में तरल गतिकी से संबंधित एक बिल्कुल नई अवधारणा को वैज्ञानिकों के सामने प्रस्तुत किया | प्रोफेसर लुडविग प्रेंड्तल द्वारा किए गए शोध पत्र का शीर्षक था - "बहुत कम चिपचिपापन के साथ तरल पदार्थ की गति (Motion of Fluids with Very Little Viscosity)" | कहने को तो इस शोध पत्र की प्रस्तुति में महज 10 मिनट लगे थे, पर इस पत्र में प्रस्तुत अवधारणाओं ने तरल गतिकी में एक ऐसा क्रांतिकारी बदलाव उत्पन्न किया कि आज भी वायु गतिकी एवं तरल गतिकी विज्ञान में लुडविग प्रेंड्तल का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है | पर वास्तविकता में एक ऐसे महान शोध पत्र को तत्कालीन वैज्ञानिकों ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया था | इस शोध पत्र की प्रस्तुति के करीबन एक वर्ष उपरांत अंतरराष्ट्रीय गणितीय कांग्रेस द्वारा उसके तृतीय अधिवेशन में प्रस्तुत समस्त शोध पत्रों को संगोष्ठी की कार्यवाही में प्रकाशित किया गया और लुडविग प्रेंड्तल का शोध पत्र इस प्रकार विश्व के विभिन्न वैज्ञानिकों के सामने चर्चा हेतु सामने आया | अपने आठ पन्नो में प्रस्तुत शोध पत्र में लुडविग प्रेंड्तल ने पहली बार परिसीमा स्तर की अवधारणा का उल्लेख किया था जिसके अनुसार उन्होंने यह बताया था कि घर्षण की वजह से किसी ठोस पदार्थ पर बहते हुए तरल पदार्थ की गति परिसीमा स्तर पर शुन्य हो जाती है | वैसे तो लुडविग प्रेंड्तल द्वारा प्रस्तुत शोधकार्य हर दृष्टि से नोबल पुरस्कार पाने के योग्य था, परन्तु उनके नाम पर कभी भी नोबल समिति ने विचार नहीं किया गया | कुछ वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि नोबल समिति उन दिनों शास्त्रीय भौतिकी में संपन्न कार्य को इतने ऊँचे पुरस्कार के योग्य मानने के पक्ष में नहीं थी | लुडविग प्रेंड्तल द्वारा प्रस्तुत परिसीमा-स्तर के नए अवधारणा के साथ साथ वायुगतिकिय खींच (aerodynamic drag) की गणना संभव हो चुकी थी | इसके साथ ही लुडविग प्रेंड्तल ने यह भी बताया था कि नेविएर-स्टॉक के समीकरणों को परिसीमा-स्तर के लिए और भी सरल रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है | अपने शोध पत्र में लुडविग प्रेंड्तल ने महज एक बार "परिसीमा-स्तर" शब्द का प्रयोग किया था परन्तु यह शब्द धीरे धीरे वैज्ञानिक शब्दकोश में अपना स्थान बनाने लगे थे | लुडविग प्रेंड्तल के इस शोध पत्र के उपरांत उनके छात्रों ने परिसीमा-स्तर शब्द का बार बार उल्लेख किया है | तत्कालीन शोधकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों के प्रोत्साहन के अभाव में लुडविग प्रेंड्तल का यह महत्वपूर्ण कार्य काफ़ी लम्बे समय तक उतनी ख्याति प्राप्त नहीं कर सका जितना वास्तविकता में उसे मिलना चाहिए था | इस शोध पत्र के प्रकाशित होने के करीबन 15 वर्ष पश्चात सन् 1920 में जब वैज्ञानिक अपना शोध हवाईजहाज के विभिन्न पहलुओं पर कर रहे थे तो उनका ध्यान पुनः लुडविग प्रेंड्तल द्वारा दिए गए परिसीमा-स्तर के अवधारणा पर जा टिकी जो धीरे धीरे मील का पत्थर साबित हो रही थी | सन् 1928 में तरल गतिकी के महान वैज्ञानिक सिडनी गोल्डस्टीन ने लुडविग प्रेंड्तल से पूछा कि उनका शोध पत्र इतना छोटा क्यों था तो जवाब में लुडविग प्रेंड्तल ने बहुत ही शालीनता से कहा कि उनका मानना था कि चूँकि उन्हें शोधपत्र प्रस्तुत करने के लिए महज 10 मिनट का समय दिया गया था अत: उन्हें काफ़ी संक्षेप में ही अपना शोधपत्र भी लिखना पड़ेगा | लुडविग प्रेंड्तल के जवाब में उनकी सादगी झलकती थी | इस वैज्ञानिक की सबसे बड़ी उपलब्धि उनकी सरलता थी | चाहे तरल भौतिकी की समस्या कितनी भी जटिल क्यों ना हो, लुडविग प्रेंड्तल को यकीन था कि हर समस्या का एक सरल समाधान होता है | उनकी ये सरलता ही थी जिसके फलस्वरूप उन्होने परिसीमा-स्तर भौतिकी जैसे बहुत जटिल विज्ञान को बड़े ही सहज तरीके से प्रस्तुत किया और कभी भी इस सहजता का तोहफा उन्हे नहीं मिला | तरल भौतिकी शास्त्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए लुडविग प्रेंड्तल को हमेशा पितामह के रूप में जाना जायेगा | अगस्त 1953 के प्रारंभ में इस महान पुरुष को मस्तिष्क में ज्वर की शिकायत हुइ और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया | धीरे धीरे लुडविग प्रेंड्तल की सेहत बिगडने लगी थी और शायद उनको भी इस बात का अन्देशा होने लगा था कि उनका अंत नजदीक है पर उन्होंने बहुत ही सहज रूप में अस्पताल के कर्मचारियों से एक अटूट रिश्ता बना लिया | अन्तत: 15 अगस्त 1953 को लुडविग प्रेंड्तल का इंतकाल हो गया और एक महान वैज्ञानिक अतीत के पन्नो में इतिहास बनकर हमेशा हमेशा के लिए विलीन हो गया | लुडविग प्रेंड्तल की मृत्यु के चार वर्ष उपरांत उनके सम्मान में वैमानिकी विज्ञान (Society for Aeronautical Sciences) द्वारा लुडविग प्रेंड्तल के नाम पर एक विशिष्ट पुरस्कार की स्थापना की गई जिसमे वैमानिकी विज्ञान शाखा में विशेष योगदान के लिए एक युवा वैज्ञानिक को सोने का एक रिंग दिया जाता है, और इस सम्मान को लुडविग प्रेंड्तल रिंग के नाम पर याद किया जाता है | 4 फरवरी 1957 को लुडविग प्रेंड्तल की जन्मतिथि पर सर्वप्रथम तरल भौतिकी के महविद श्री वॉन कर्मान को इस सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया | आज बेशक़ लुडविग प्रेंड्तल हमारे बीच नहीं है परन्तु उनके सादगी भरे व्यक्तित्व से हमे बहुत कुछ सिखने को मिलता है | आज के युग में हम ख्याति प्राप्त करने के लिए एक दूसरे के खिलाफ लडने को तैयार हो जाते हैं | सबसे पहले रहने के होड में हम यह भी भूल जाते हैं कि महानता की कोई परिभाषा नहीं होती और महान बनने के लिए हमें किसी व्यक्ति विशेष की ना ही पूजा अर्चना करने की आवश्यकता है और ना ही किसी की आलोचना, बल्कि मेहनत का रास्ता अख्तियार करना पडता है | लुडविग प्रेंड्तल की सादगी ने एक बिलकुल नए अध्याय की शुरुवात महज 10 मिनट के प्रस्तुतिकरण से की थी जिसका सबब यह है कि अगर हममे दृढ़निश्चय हो तो किसी भी बहाने की जरुरत ही नहीं पडती, और हम अपना पक्ष कम से कम समय में भी प्रस्तुत कर सकते हैं | इन तथ्यों के अलावा एक और निष्कर्ष यह भी निकलता है कि लुडविग प्रेंड्तल के शोधकार्य को एक विशेष दर्जा मिलने में बहुत लंबा समय लग गया था पर उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और अन्तत: उनके शोधकार्य को सही समय पर पूरी तरह से स्वीकार भी किया गया | हमारे जीवन में भी ऐसे बहुत अवसर आते हैं जब सच्चाई का पक्ष रखने के बावजुद, समाज उसे अनदेखा कर देता है परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि सच्चाई की हार हो गई हो | कठिन कार्य की ज्यादतर अनदेखि होती है परन्तु एक लंबे अंतराल के पश्चात उसका फल निश्चित रूप से मीठा ही होता है | शायद इसीलिये कहा जाता है कि रात में सबसे ज्यादा अंधेरा हो तो जान लेना चाहिए कि जल्द ही सबेरा होने वाला है |
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October 2021
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