आशा की किरण : एक समाज सेवा
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और हमेशा से ही हम सभी इस समाज के एक अभिन्न अंग रहे हैं. समाज के बनाने और बिगाडने में हम सभी का अनवरत योगदान रहता है, परन्तु जाने अनजाने में समाज सेवा पर ना ही हम कभी गहन रुप से विचार विमर्श करते हैं और ना ही इस विषय पर विशेष ध्यान दिया जाता है. इस छोटे से लेख के द्वारा मैं समस्त पाठको का ध्यान समाज सेवा जैसे गंभीर विषय पर आकर्षित करना चाहता हूँ तथा अपने कुछ विचारो को आपके समक्ष रखना चाहता हूँ. सर्वप्रथम - आख़िर समाज क्या है ? हमारे परिवार के सदस्य ? हमारे मित्रगण ? हमारे पास-पडोस के व्यक्तिगण ? या हमारे मुहल्ले में रहने वाले समस्त नर-नारी ? वैसे तो समाज की परिभाषा बहुत ही सरल भी है और बहुत ही जटिल भी. परन्तु मेरे अनुसार सीधे-साधे बोलचाल की भाषा में - समस्त सजीव या निर्जीव वस्तुओं का समूह जो दिन-प्रतिदिन हमारे समक्ष प्रस्तुत होता है, किसी ना किसी रुप में इस समाज का एक अमिट हिस्सा है. और हम सभी इस समाज की सेवा के लिए अवश्य कुछ ना कुछ कर सकते हैं, बस जरुरत है एक बदलाव की. एक ऐसा बदलाव जिसके तहत हम सभी इस बात का सर्व सम्मति से स्मरण करें और करते रहें कि हमारे योगदान से एक ऐसे समाज का फायदा होगा जिसके हम स्वयम एक सदस्य हैं. और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर इस समाज का कोई भला कर सकता है तो सिर्फ़ हम कर कर सकते हैं. हमें कभी भी ऐसी उम्मीद नही रखनी चाहिए कि भगवान का कोई बंदा ऊपर से आएगा और इस समाज का उद्धरण करेगा. जो कुछ करना है हमें स्वयम अपने आप करना होगा. सुबह सुबह जब हम पास के बागान में भ्रमण करने निकलते हैं तो अकसर ऐसे अनगिनत व्यक्तियो से अनायास ही मुलाकात हो जाती है जिनका ना ही हमें नाम पता मालूम होता है और ना ही उनका गंतव्य स्थल, पर जाने अनजाने में एक दूसरे की ओर देखकर हल्की मुस्कान का आदान प्रदान हो ही जाता है. इस समाज में ऐसी मुस्कान से एक नए रिश्ते का निर्माण होता है. ऐसे मुस्कान से समाज में धीरे धीरे सकरात्मक ऊर्जा का विस्तार होना शुरू होता है. इसलिए अगर कभी भी आपको समाज में किसी अजनबी से रुबरु होना पड़े तो कोशिश किजियेगा की एक छोटे से मुस्कान से आप समाज को एक आशात्मक ऊर्जा का संदेश दे सकते हैं. एक मुस्कान अपने आप में सकारात्मक सोच का आगाज़ होता है. कामकाजी इंसानो के लिए सुबह सुबह घड़ी की रफ्तार जरुरत से भी ज्यादा तेज लगती है, जल्दी जल्दी जलपान कर समय पर कार्यालय पहुंचने का तनाव, तो आफिस में बॉस की दुत्कार का भय. पता नही क्यों, सुबह घड़ी की रफ्तार ज्यादा ही त्वरित लगती है. ऐसे तनाव के माहौल में जब हम सड़क पर अचानक से लालबत्ती का सामना करते हैं तो महज 90 सेकंड का समय मानो 90 घंटो जैसा प्रतीत होता है, और लाचार मन बगैर कुछ सोचे समझे नियम कानून को तोडने की कोशिश करता है. पर क्या ऐसे अवसर पर हमारा दायित्व नही बनता की हम एक जिम्मेदार नागरिक का फर्ज अदा करें और लालबत्ती को हरीबत्ती में तबदील होने तक इंतेजार करें ? ऐसे मौको पर हम सभी का फर्ज बनता है कि समाज को एक अनुशाशन की मिसाल दे. फर्ज कीजिये कि आपका कोई बहुत करीबी रिश्तेदार सड़क के दूसरी ओर से अपनी गाडी में आ रहा है और आप लालबत्ती को तोडते हुए अपने ही रिश्तेदार से टकरा जाते हैं, तो क्या आपको अफसोस नही होगा कि आपकी एक छोटी सी गलती की वजह से आपके नज़दीकी रिश्तेदार को चोट पहुंचती है ? क्या पता, ऐसे घटना में आपका भी बहुत बडा नुकसान हो जाए ? और ऐसे घटने वाले किसी भी दुर्घटना को हम अपने दायित्व से ना केवल टाल सकते हैं बल्कि हमारे अनुशाशन द्वारा रोकने का भरसक प्रयास भी कर सकते हैं. वास्तव में समाज निर्माण की दिशा में आपका कदम बहुत ज्यादा सराहनीय हो सकता है क्योंकि आपको देख कर सम्भवतः कुछ और नागरिक भी अपने दायित्व को निभाने का प्रयास करें. बस जरुरत है तो एक शुरुवात कि जो आप ख़ुद कर सकते हैं. चलिए ये तो हुई सड़क पर अनुशाशन हीनता के फलस्वरुप होने वाले दुर्घटनाओ को रोकने की बात, अब हम देखे कि इस समाज को हम और क्या दे सकते हैं. जरुरतमंद इंसानो को अगर अनचाहे ही कोई मदद कर दे तो ये अपने आप में बहुत बडी समाजसेवा है. फर्ज कीजिये कि आप अचानक से किसी सडक दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं ! हो सकता है आपके पास बहुत पैसा हो और आपका बैंक बेलेंस भी बहुत सराहनीय हो परन्तु ऐन वक्त पर इस समाज का एक सदस्य ही आपकी मदद कर सकता है. एक ऐसा बंदा जो अपने बहुमुल्य समय से कुछ क्षण आपके लिए खर्च करे. जो आपको समय पर नज़दीक के अस्पताल में दाखिल करे और आपके परिवारजनो को इत्तला करे कि आप एक दुर्घटना का शिकार हो गए हैं. अगर आप स्वयम ऐसी मदद ना कर सके तो कम से कम उन लोगो को प्रोत्साहित करें जो मदद करने को तत्पर हो. आपका प्रोत्साहन भी अपने आप में समाज सेवा की दिशा में एक सकारत्मक कदम साबित होगा. इस समाज में हमारा सबसे बडा दायित्व होता है - दान करना. एक नेक दिल इंसान कभी भी दान करने से नही कतराता है. पर इसका मतलब यह नही है कि आप अपने मेहनत से कमाये हुए धन-पूंजी को मुफ्त में लुटाते रहें. आप सबसे पहले इस बात का मुल्यांकन करें कि भगवान ने आपको ऐसा क्या दिया है जो आपके बस दान करने योग्य है ? किसी होटल में लंच या डिनर के उपरांत टिप में दिए हुए दस - बीस रुपये आपके लिए शायद ज्यादा मायने नही रखते होंगे पर यह रकम वहां काम करने वाले बैरे के लिए या सड़क पर बैठे किसी भिखारी के लिए बहुत बडी रकम होगी. अकसर बडी पार्टियों में हम अपने थालि में उतना खाना छोड़ देते हैं जितना खाना अनगिनत गरीबो को खाने को भी नसीब नही होती. क्या ये इस समाज का असंतुलन नही है ? "एक अकेला क्या कर सकता है”, ऐसी सोच बदलने की आवश्यकता है. कभी भी आप बडी पार्टियों में भोजन को व्यर्थ ना जाने दे, हो सकता है आपके द्वारा छोडा गया भोजन किसी जरुरतमंद इंसान का पेट भर दे. यह भी तो एक प्रकार की समाज सेवा ही है. मुझे एक और बात बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है और वह है - एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रचार-प्रसार. जब कभी भी आपको समाज में चर्चा करने का अवसर प्रदान हो या इस समाज के सदस्यों से बातचीत करने का सौभाग्य प्राप्त हो तो अपने शब्दों को काफ़ी तोल कर सामने रखे. इस बार पर गहन रुप से विचार करें कि क्या आपके वार्तालाप से इस समाज पर कोई धनात्मक प्रभाव आ सकता है ? अकसर समूह में आपने देखा होगा कि दूसरो की निंदा करने में बहुत लोगो को एक अजीब सी खुशी मिलती है. हो सकता है कि इस समाज की कुछ कार्यकलाप या विधि आपको पसंद नही आती हो, परन्तु महज निंदा करने से कभी भी इस समाज का भला नही हो सकता. अगर आप कभी भी किसी बात की निंदा करते हैं तो प्रयास किजियेगा कि आप इस बात पर भी ध्यान दे कि ऐसा क्या किया जा सकता है जिससे ऐसे निंदनीय कार्यकलापो में सुधार लाया जा सके ? और क्या आप स्वयम ऐसे सुधार कार्यो में अपना योगदान कर सकते हैं ? किसी दूसरे को सलाह देना बहुत आसान होता है, पर वास्तव में उसका अनुचरण करना बहुत कठिन कार्य है. इसलिए समाज सुधार में सबसे पहले और सबसे आगे हमें स्वयम आना होगा, तभी इस समाज में एक सकारत्मक उर्जा का प्रचार-प्रसार किया जा सकता है. जैसे सुर्योदय के उपरांत सुरज की किरणे धीरे धीरे अंधकार का नाश कर देती हैं और अपने प्रकाश से आशा की एक नयी उमंग भर देती हैं ठीक उसी प्रकार हम अपने सार्थक प्रयासों से इस समाज में आशा की एक किरण का प्रचार कर सकते हैं. इसके लिए सबसे जरूरी है कि सर्वप्रथम इस समाज में व्याप्त नकारात्मक सोच का नाश किया जाये. अगर हम सब अपने सकारात्मक सोच से अपने प्रयासो को त्वरित करें तो एक ना एक दिन इस समाज में आशावाद का खून दौडेगा. मेरे द्वारा प्रस्तुत लेख का मुख्य उद्देश्य एक बहुत अल्प, लेकिन सार्थक प्रयास है, जो आपको मजबूर करे के क्या इस समाज के पुनःनिर्माण में क्या हम अपना दायित्व निभायेंगे या महज एक मूक दर्शक की तरह आलोचानाओ के दौर को बढावा देंगे ? यह अपने आप में एक प्रश्नचिह्न भी है और उत्तर भी. 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