एक असंतुलित समाज
हम सभी इंसानो में ज्यादातर लोगों की दिनचर्या सुबह सुबह चाय-नाश्ते के साथ अखबार की सुर्खियों को पढने के साथ होती है | पता नहीं अखबार की उन सुर्खियों में ऐसा क्या खास होता है कि जब तक एक बार मुख्य खबरों को देख ना लें, सारा का सारा दिन अधूरा सा लगता है | बावजूद इस सच के, इस समाज की एक और कड़वी सच्चाई यह भी है कि हमारे ज्यादातर अखबारों में प्रथम पृष्ठ पर दिल दहला देने वाले समाचार ही होते हैं - "एक अबला के साथ ****", "रेल हादसे में 37 मारे गए", "प्रेम में असफल जोड़े ने आत्म्हत्या किया", "रुपया डॉलर के मुकाबले और भी गिरा", "सेंसेक्स फिर गिरा" | क्या वाकई में हमारे पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे पढ़ कर हम हर्ष का अनुभव कर सकें ? इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही साधारण है - हाँ अथवा नहीं | जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार इस सवाल के भी दो जवाब हो सकते हैं | इस छोटे से लेख के जरिये मै एक छोटा सा प्रयास करना चाहता हूँ कि इस असंतुलित समाज को कुछ हद तक संतुलन में लाया जा सके | सबसे पहले मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मैने इस समाज को असंतुलित क्यों कहा है | अगर इस समाज में फरिश्ते हैं तो इसी समाज में दानवरुपी शैतान भी हैं जो हमेशा एक असंतुलन कायम रखते हैं | पर क्या यह सच नहीं है कि फरिश्ते और शैतान दोनो ही किसी माँ के कोख से ही जन्म लेते हैं | जब किसी इनसान का जन्म होता है तो ना ही वह शैतान होता है और ना ही एक फरिश्ता | इस समाज के परिवेश में वह इनसान या तो एक शैतान बन जाता है या एक फरिश्ता | पर यह भी तो संभव है कि हमारा समाज इन दोनों के बीच के फासलो को कम करने का प्रयास करे | शायद इस दिशा में हमारा प्रयास कभी भी सार्थक नहीं हुआ है | हमारे अंदर का दानवरुपी शैतान ख़ुद भ्रष्ट काम करने के लिए हमें उकसाता है और दूसरों से ईमानदारी की उम्मीद रखता है | भगवान के बनाए हुए इस समाज में भगवान ने हर प्रकार की सुख सुविधाये प्रदान की है, पर जान बुझ कर भगवान ने कुछ ऐसा असंतुलन बना दिया है कि हम लाख कोशिशों के बावजूद इस असंतुलन को कम नहीं कर पाते | वैसे तो हर इनसान के पास भगवान का दिया कुछ ना कुछ है, परन्तु इनसान की चाहतों की कोइ सीमा नहीं होती | अगर आज हमारे पास रहने को घर, खाने को संपूर्ण भोजन और पहनने को कपड़े हैं तो वास्तविकता में हम बहुत अमीर हैं क्योंकि आज अनगिनत इनसान ऐसे भी हैं जिनके पास इन तीनों में से एक भी वस्तु पर्याप्त में नहीं है | अगर ऐसे माहौल में हमें कभी भी अवसर मिले तो उन गरीबों को यथाशक्ति तथाभक्ति दान करने में हिचकिचाहट नहीं करनी चाहिए, पर सच्चाई यह है कि हम भगवान से शिकायत करते हैं कि - "भगवान, मुझे और पैसा दे दो ताकि मैं एक नइ चमचमाती हुइ कार खरीद सकूँ" | और कार भी इसलिए नहीं कि हमें सच में एक कार चाहिए बल्कि इसलिए कि हमारे पड़ोसी शर्मा जी ने नइ कार जो ले ली है | एक नज़रिया यह है कि अगर हम पैसा कमा रहे है तो हमारी मर्जी, हम जो जी चाहे वह करें | कहने को तो मैं भी इसके खिलाफ नहीं हूँ पर क्या हम ऐसा कुछ कर सकते हैं जिससे जो हमारे पास पर्याप्त मात्रा में है, उसे दूसरों के साथ बाँट सकें ? अगर इस पहलू का जवाब सकारात्मक हो तो कभी भी संकोच ना करें | कुछ दिनो पूर्व जब मैंने दूरदर्शन पर भ्रूण हत्या पर एक कार्यक्रम देखा था तो मेरा दिल दहल गया था | कैसे कोई इनसान एक भ्रूण की हत्या कर सकता है, जबकि इस असंतुलित समाज की सच्चाई यह भी है कि न जाने कितने संतानरहित जोड़े एक ऐसे ही भ्रूण प्राप्ति के लिए न केवल भगवान से प्रार्थना करते हैं बल्कि अपना इलाज भी करवाते हैं | और आज के दिन भी एक कटु वास्तविकता यह है कि जिन्हे संतान चाहिए उन्हे संतान नहीं मिलता और जिन्हें संतान प्राप्ति का द्वार दिखता है वो बड़े ही निर्दयता से एक भ्रूण को इस समाज में आने से पहले भी मार डालते हैं | क्या यह समाज के असंतुलन का बयान नहीं करता ? आज के कलयुग में एक तरफ हम इक्कीसवीं शताब्दी में विज्ञान के नए अजूबों की बात करते है तो दूसरी तरफ़ दकियानूसी जातपाँत के बेड़ियों में बन्धे रहना पसंद करते हैं | ऐसे अनगिनत प्रेमी युगल हैं जो खुशी खुशी विवाह कर सफल दाम्पत्य जीवन प्रारंभ करना चाहते हैं, परन्तु इस असंतुलित समाज द्वारा कायम जातपाँत की बेड़ियों में उन्हें विवश कर रखा है और वो महज एक बूत बनकर रह जाते हैं | और अगर किसी ने इन बेड़ियों को तोड़ने का प्रयास किया तो समाज के ठेकेदारों को जरा भी देर नहीं लगती और वो अपना शक्ति प्रदर्शन करने लगते हैं | क्या ऐसे समाज को अब भी आप संतुलित कहेंगे ? कहने को अखिलेश और राजन (काल्पनिक नाम) भी काफ़ी गहरे दोस्त थे जब उन्होने साथ-साथ इसरो में दाखिला लिया था और साथ-साथ आईआईटीपी का कोर्स पूरा किया था, पर आज दोनों की बिल्कुल भी नहीं बनती | वह इसलिए कि राजन की पदोन्नति अखिलेश से 6 महीने पहले हो गइ और आज के दिन राजन की पगार अखिलेश से करीबन 900/- रुपये ज्यादा है | महज 900/- रुपयों के फासलो ने दोनों के बीच बहुत बड़ी दरार खड़ी कर दी है | पर क्या यह भी सच्चाई नहीं है कि आज राजन का आयकर अखिलेश से ज्यादा है ? पर समाज का एक बड़ा तबका इस असंतुलन को हमेशा कायम रखना चाहता है, और जब तक राजन और अखिलेश की दोस्ती की गहराई ऐसे असंतुलन को संतुलित करने का प्रयास नहीं करें, तब तक यह असंतुलन तो बना ही रहेगा | हमारे राहुल (काल्पनिक नाम) की बात कीजिये | अगर उसके सामने कोई खूबसूरत सी लड़की निकल जाए तो जाने-अनजाने में छेड़खानी हो ही जाती है - "वाह क्या जीन्स पहनी है, क्या बात है, वगैरह वगैरह ..." | पर जब राहुल की बहन पर कोई टीपा-टिप्पणी करें तो साहबज़ादे का खून खौल उठता है | अजीब है - इस समाज की असंतुलित लीला | भाइ साहब - कभी तो कुछ ऐसे काम भी करें जिससे इस असंतुलित समाज के असंतुलन को कम किया जा सके | अगर आपको कोई लड़की उतनी ही पसंद आ गई हो तो एक शालीन तरीके से उससे दोस्ती करें और विवाह रचाये | पर विवाह के नाम पर भाइ साहब की बिलकुल अलग विचार धारा है | "मेरी पत्नी एक शालीन से साडी में ही बाहर आए तो अछी दिखती है" | वाह भइ वाह - क्या विचारधारा है | वैसे तो कहने के लिए बहुत उदाहरणों को पेश किया जा सकता है, पर मुझे तो यह समाज पुरी तरह से असंतुलित ही दिखता है | लेकिन मुझे इस असंतुलित समाज में भगवान के बनाए हुए ऐसे बहुत फरिश्ते भी नजर आते हैं जो इस असंतुलन को कम करने का निरंतर प्रयास करते रहते हैं | हो सकता है कि आप के जीवन में भी आपको ऐसे नेकदिल इनसान मिलें | अगर कभी भी आप ऐसे फरिश्तों से रूबरू हो तो प्रयास कीजियेगा कि आप उनके हौसलों को और बढाये | क्या पता - आपका एक छोटा सा प्रयास इस असंतुलित समाज के संतुलन को बनाये रखने में सार्थक प्रयास साबित हो और ऐसे अनगिनत प्रयासों से इस कलयुग में अखबारों की सुर्ख़ियाँ ही बदल जाए और आने वाली पीढ़ी एक संतुलित समाज का हिस्सा बन जाए | [ DISCLAIMER ] All content provided on this web-page blog is for informational purposes only. 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